Sunday, January 1, 2017

"अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा" (Fictional Aadi)

अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा,
सुदूर
 पर्वतो पर फैली धुंध की छटा बन गया..

खिलखिलाती सर्दियों की धुप बन तपा,
तो बूँद ओस की बन फूलो पर बैठ गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..

कभी
 छुए मन को भांति-भांति ठंडी हवा बन,

कभी विखर आकाश में चिलमिलाती सतरंगी बन गया..
रातो में मिला आवारा सा भटकती चांदनी बन,
कागज़ पर उतरा और मेरे कविता का छन्द्द बन गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..

फिज़ाओ
 में घुल गया हर तरफ जैसे वो,

कोई मन पसंद मेरे प्यार की मीठी धुन बन गया..
बूँद बन बरसता रहा सूखे मन आँगन में,
सौंधी मिटटी की पावन सुगंध बन गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..

मेरे
 दिल का आवाज़ गूंजाबन के कोई राग भोर का,

त्योहारों का मस्त मृदंग तासा बन गया..
महक उठा गुलशन में चम्पई खुशबू सा,
पंछी उन्मुक्त आज़ाद बन गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..

उदास
 
.नीम सी कड़वी शामों को,

मीठा मीठा रसाल बन गया..
बहता दीपक नदियों में मंद मंद,
पतझर में जंगल का उपवन बन गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..

आधी
 रातो में आता गीत दूर से कोई,

कभी गलो में गुलाबो सीमुस्कुराहटो का सबब बन गया..
पलकों से बह गया लहू बन के,
कम्बक्त ! ये तुम्हारा ख्यालमेरे ज्वलन का अद्भुत सिलसिला बन गया..
अकेले मे ख्याल जो तुम्हारा बरसा..