Sunday, April 16, 2017

"मालूम तुम्हे भी चले कभी" (Fictional Aadi)


मालूम तुम्हे भी चले कभी,
कितनी रात ढली बिन चंदा,
कितने दिन बिन सूरज बीते,
कैसे तड़प तड़प कर बिखरे,
भरी आँख में सपने लिए,
घुट घुट कर है विष पिए,
मन को जब योगी भा जाये,
दिल को फिर कौन समझाए..

मालूम तुम्हे भी चले कभी,
उन घावों की अमर-कहानी,
जिन के आँखे पानी पानी,
उन यादो की कड़वी रस पीकर ,
दुआ करे वो तेरे हक़ पर..
तुम को कहाँ मिलेगा अवसर,
कुछ पल रोम-रोम में बसकर,
मालूम तुम्हे भी चले कभी,
मिलने की कोई आस नहीं,
फिर भी वो सिर्फ तेरा हमनशीं,
मालूम तुम्हे भी चले कभी..