Tuesday, December 12, 2017

"एक ग़ज़ल लिखा तुझे सोच के" (Fictional Aadi)





एक ग़ज़ल लिखा तुझे सोच के, तेरी मुस्कुराहटों को देख के,
कि इनमें छुपा है प्यार बस, मेरे लिए मेरे लिए..
होश में मैं अब न हूँ, ये वक़्त भी अब थम गया,
बिना मदिरा सोम के, मैं झूमता यूं रह गया..
पिछले दिनों की बात है, इतने करीब से इश्क़ गया,
मुझे लगा बस हो गया, मैं जी गया, मैं मर गया..

एक ग़ज़ल लिखा तुझे सोच के, तेरी नयन को देख के,
की इनमें छुपा है खवाब बस, मेरे लिए मेरे लिए..
गीत मैं लिखता रहूँ, तुझमें ही जीता रहूँ,
एक और शाम ढल गया, तुझे सोचते तुझे सोचते..
तेरी गोद में, मैं सर रख, तेरी जुल्फों से मैं खेल लूँ,
भटक जाऊ तेरी निगाहों में, तुझे खोजते तुझे खोजते

एक ग़ज़ल लिखा तुझे सोच के, तेरी उलझनों को देख के,
कि इनमें छुपा है अदायें बस, मेरे लिए मेरे लिए..
जो दर्द छुपा हो सीने में, तेरे गले से आए लागु,
तू सुकून दे सतरंगी सा, मैं मोर् सा नाच ऊठु..
मेरा वजूद तुम्ही से हो, तू मुझमें आ के ढल जाये,
सूखी पड़ी दिलो में काश! प्यार घटाये बन बरस जाये..

एक ग़ज़ल लिखा तुझे सोच के, तेरी मुस्कुराहटों को देख के,
कि इनमें छुपा है प्यार बस, मेरे लिए मेरे लिए..

Monday, December 11, 2017

"बुला लोगी ना..??" (Fictional Aadi)


मैं दर्द से लिखता हूँ ज़िन्दगी के किस्से,
तुम सब दर्द उनमे से चुरा लोगी ना ..??

हवाओं के तेवर से बहुत मायूस हूँ मैं,
ये जलते दीये..ये जलते दिल..उफ़..
आंधियों से मुझको बचा लोगी ना..??

बेखबर है चाँद, सुध लेता ही नहीं हमारी,
पास तुम्हारे बेशक़ हज़ारो सितारे होंगे,
तुम मुझसे अपना दिल से बहला लोगी ना..??

सज़ा दूं अपनी सारी शायरी कदमो में तुम्हारी,
अपने पलकों पे तुम इसको उठा लोगी ना..??

यकीन है मुझको ना भुला पाओगी तुम भी,
फ़ासले जो दर्मिया है वो सब मिटा दोगी ना..??

चलता हूँ सफर के आखिरी पड़ाव के दूसरी पा मैं,
तन्हा, खामोश, एक आस के साथ बैठा हूँ,
तुम मुझको अपने जुल्फों के साये में बुला लोगी ना..??


Sunday, December 10, 2017

""मुझे क्या..??"" (Fictional Aadi)


खुद की नज़र में गिर जाऊंगा, कैसे छोड़ दूं मोहब्बत करना,
बस इतनी सी बात पे, वो मुझे नहीं चाहती तो क्या..??

मुझको जहाँ की दुश्मनी और दोस्ती से क्या,
खोया हुआ हू खुद मैं ही, मुझको किसी से क्या..??

तू है तो फिर मुझको चाहिए फिर कौन सी खुशी,
जो तू नहीं तो, मुझको जहाँ की खुसी से क्या..??

महबूब के ख्यालों में यार हूँ, कुछ सूझता नहीं,
सजदों में छिपी अब किसी पाकीजगी से क्या..??

जब ज़िन्दगी में बाकि नहीं कोई रह गया,
तो मुझको भला सिकवा कोई ज़िन्दगी से क्या..??

जिनको
यकीं ख़ुद पे है  तुझ पे भरोसा,
आदी! ऐसे क़रीब लोगो की हमसायगी से क्या..??

साफ़
दिल हूँ, आईने की तरह बोलता हुं सच,
अब पंडितों से क्या मुझे, और मौलवी से क्या..??

मंदिर
और काबा की सीढ़ियों पे बैठ तो गया,
जो दिल से , जुबान से हो, उस बन्दगी से क्या..??