Sunday, December 10, 2017

""मुझे क्या..??"" (Fictional Aadi)


खुद की नज़र में गिर जाऊंगा, कैसे छोड़ दूं मोहब्बत करना,
बस इतनी सी बात पे, वो मुझे नहीं चाहती तो क्या..??

मुझको जहाँ की दुश्मनी और दोस्ती से क्या,
खोया हुआ हू खुद मैं ही, मुझको किसी से क्या..??

तू है तो फिर मुझको चाहिए फिर कौन सी खुशी,
जो तू नहीं तो, मुझको जहाँ की खुसी से क्या..??

महबूब के ख्यालों में यार हूँ, कुछ सूझता नहीं,
सजदों में छिपी अब किसी पाकीजगी से क्या..??

जब ज़िन्दगी में बाकि नहीं कोई रह गया,
तो मुझको भला सिकवा कोई ज़िन्दगी से क्या..??

जिनको
यकीं ख़ुद पे है  तुझ पे भरोसा,
आदी! ऐसे क़रीब लोगो की हमसायगी से क्या..??

साफ़
दिल हूँ, आईने की तरह बोलता हुं सच,
अब पंडितों से क्या मुझे, और मौलवी से क्या..??

मंदिर
और काबा की सीढ़ियों पे बैठ तो गया,
जो दिल से , जुबान से हो, उस बन्दगी से क्या..??



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